अरविंद केजरीवाल की आजादी में कटौती
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईडी की पूछताछ के बाद 1 अप्रैल को 15 दिनों के लिए न्यायिक हिरसत में तिहाड़ भेज दिए गए हैं. वहां वह एक वीआईपी कैदी की हैसियत से रहते हुए न केवल जेल से ही सरकार चलाने को लेकर अड़ गए, बल्कि उन्होंने अपनी सेहत का हवाला देते हुए खाने—पीने संबंधी कुछ सुविधाओं की भी मांगी कर दी. आईए जानते हैं कि जेल प्रशासन ने उनकी कितनी मांगे मानी और वह किस तरह के कायदे कानून में रहकर काम करती है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री का तिहाड़ में कैद होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, कारण इनसे पहले भी कई मुख्यमंत्री जेल में रहते हुए सालों—साल तक सजाएं काट चुके हैं. उनमें लालू प्रसाद, जयललिता, ओम प्रकाश चौटाला, चंद्रबाबू नायडू, मधु कोडा, शिबू सोरेन के साथ अब हेमंत शोरेन के नाम भी शामिल हो गया है.
ऐसे में यह जानने—समझने का समय आ गया है कि इनके कैदी बनने का एक आदर्श के रूप क्या है? क्या इनकी बुनियादी सुविधाएं सामान्य कैदी से अलग होती हैं? इस बारे में लेखक, वकील और जेल सुधारों के विशेषज्ञ रह चुकी मधुरिमा धानुका ने इंडियन एक्सप्रसे में एक लेख लिखा है. वह वह 2008 से राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल में जेल सुधार कार्यक्रम से जुड़ी रही हैं. लेख में उनके विचार व्यक्तिगत हो सकते हैं, लेकिन यह जेल के भीतरी दुनिया की एक स्पष्ट रूपरेखा खींचती है. साथ ही यह सवाल भी खड़े करती है कि क्या अरविंद केजरीवाल का 'विशेषाधिकार' हर कैदी का अधिकार होना चाहिए?
कौन वीआईप कैदी:
जेल का मेन्युअल के अनुसार कोई मंत्री अगर आर्थिक अपराध के मामलों में जेल में बंद होता है, तो उसे वीआईपी कैदी माना जा सकता है. जेल नियमावली यह भी बताती है कि जेल में अंडरट्रायल कैदियों के लिए कुछ नियम कायदे हैं.
यानी कि आमतौर पर जब भी कोई विधायक, सांसद, मंत्री या बड़ा उद्योगपति जेल में जाता है और अगर वह आर्थिक अपराध के मामलों में अंडरट्रायल है, तो खुद के सुपीरियर या वीआईपी होने की बात कहते हुए उन सुविधाओं की मांग करता है, जो जेल में मैन्युअल में उन्हें अलग से दी गई हैं.
केजरीवाल के मामले में भी कुछ ऐसा ही है, तभी उनको घर से बना खाना खाने की अनुमति है, जो रोज उनके लिए आता है. इसके अलावा डायबिटीक मरीज होने के कारण उन्हें दवाइयां लेने के साथ शुगरफ्री चाय भी जेल में दी जाएगी. साथ ही उन्हीं खुद चाय बनाने के लिए इलेक्ट्रीक केतली मुहैया करवाने की बात कही गई है.
यह सब उन्हें सुपीरियर क्लास के तहत मिला है. सुपीरियर क्लास के अंतर्गत आने वाली सुविधाओं में बंदी को एक मेज, एक चौकी, अखबार, सोने के लिए लकड़ी का तख्त, दरी, कॉटन की चादर, मच्छरदानी, एक जोड़ी चप्पल, कूलर, बाहर का खाना, जेल के अदंर भी खाना अलग से बनवाया जा सकता है आदि की सुविधाएं दी जाती हैं. वहीं एक आम कैदी को खाने के लिए एक प्लेट और एक गिलास दिया गया है. सोने के लिए दरी, कम्बल दिया जाता है. उन्हें रहने के लिए अलग छोटी सेल दी जाती हैं. अगर वह किताबें पढ़ने की मांग करें तो वो भी मुहैया कराई जाती है.
सवाल – वीआईपी कैदी कौन होते हैं?
– कैदियों को उनकी सामाजिक स्थिति और आर्थिक प्रोफ़ाइल के आधार पर ‘वीआईपी स्थिति’ के लिए आवेदन करने का अधिकार है. आम तौर पर वीआईपी कैदी के लिए पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री, संसद सदस्य (एमपी), राज्य विधायक के सदस्य, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष / उप-वक्ताओं, मौजूदा सांसद / विधायकों और न्यायिक मजिस्ट्रेट को चुना जाता है. ज्यादातर दोषी राजनेताओं के लिए यह विशेष स्थिति प्राप्त करना बेहतर रहने-खाने की व्यवस्था कर लेने का प्रवेश द्वार है.
यानी कि एक बार फिर एक कैदी की जिंदगी सबके सामने है. वे क्या खाते हैं, कब उठते हैं, कैसे सोते हैं - ये सवाल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, समाचार शो और निजी बातचीत में पूछे जा रहे हैं. जिज्ञासु मन लगातार सोच रहे हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को क्या विशेष विशेषाधिकार उपलब्ध कराए जाएंगे?
यह पूछने का समय नहीं है कि मुख्यमंत्री को कुछ सुविधाएं क्यों उपलब्ध कराई जा रही हैं, बल्कि यह सवाल करने का है कि सभी कैदियों को मानक के रूप में ये सुविधाएं क्यों नहीं प्रदान की जाती हैं? मधुमेह के लिए दवा तक पहुंच, एक कलम, कागज, एक टेलीविजन, चिकित्सा कर्मचारी, किताबें - इन्हें "बुनियादी" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, न कि "विशेष" के रूप में. तो फिर अन्य कैदियों को ऐसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित क्यों किया जाता है, जबकि दंड-शास्त्र का यह लंबे समय से स्थापित सिद्धांत है कि जेलें ऐसी जगहें हैं, जहां लोगों को "सजा के लिए" भेजा जाता है.
सरल शब्दों में, इसका मतलब यह है कि जब व्यक्तियों को कैद किया जाता है, तो उसकी आजादी में कटौती ही सजा है. कहीं भी यह निर्धारित नहीं है कि कैदियों को कंक्रीट के फर्श पर सोना चाहिए, अस्वच्छ परिस्थितियों में रहना चाहिए या कीड़े वाला भोजन खाना चाहिए. फिर भी, यह एक उम्मीद ही लगती है. कठिनाइयों का जीवन, दुख के दिन, निराशा की रातें - एक सामान्य व्यक्ति एक कैदी के जीवन की कल्पना इसी तरह करता है. अफसोस की बात है कि इस कथा को शायद ही कभी चुनौती दी जाती है, जो हमें वर्तमान स्थिति में लाती है, जहां सबसे बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच एक विशेषाधिकार की तरह प्रतीत होती है।
दिल्ली जेलों में तीन जेल परिसर हैं, तिहाड़ दुनिया में सबसे बड़ा है, जिसमें नौ केंद्रीय जेलें शामिल हैं; दूसरा रोहिणी में और तीसरा मंडोली में छह केंद्रीय जेलों के साथ है. साल 2022 के अंत में, दिल्ली की जेलों में कैदियों की संख्या 18,497 थी और कैदियों की संख्या 185 प्रतिशत थी. एक चिंताजनक तथ्य यह है कि राष्ट्रीय औसत (प्रति लाख जनसंख्या पर 52 कैदी) की तुलना में दिल्ली में कारावास की उच्च दर (प्रति लाख जनसंख्या पर 110 कैदी) है.
सेंट्रल जेल नंबर 2 जहां केजरीवाल बंद हैं, वहां अन्य जेलों की तुलना में सबसे कम 118 प्रतिशत कैदी हैं, सेंट्रल जेल नंबर 4 में 466 प्रतिशत (740 कैदियों की क्षमता में 3,453 कैदी) और सेंट्रल जेल नंबर 1 है. 411 प्रतिशत अधिभोग पर (565 कैदियों की क्षमता में 2,323 कैदी).
इस स्थिति में सवाल उठाता है कि स्कूलों या अस्पतालों जैसे संस्थानों के लिए आवंटन उपलब्ध सीटों या बिस्तरों की संख्या पर आधारित होता है, जेलों के लिए ऐसे कोई मानक क्यों नहीं हैं? किसी कैदी को बिना क्षमता वाली जेल में भेजना क्यों स्वीकार्य है? जेल अधीक्षक को सीटें (क्षमता) पूरी होने पर प्रवेश देने से इनकार करने का अधिकार क्यों नहीं है? सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार कैदियों के संदर्भ में जीवन के अधिकार को बरकरार रखा है. जीवन के अधिकार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल है, और इसमें भीड़भाड़ वाली जेलों में हिरासत में न रखे जाने का अधिकार भी शामिल होना चाहिए.
भारत सरकार द्वारा तैयार मॉडल कारागार और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 की धारा 3 में कहा गया है कि जेलों का एक कार्य कैदियों को भोजन, कपड़े, आवास, अन्य आवश्यकताएं और चिकित्सा उपचार प्रदान करना है. फिर भी, कोई पाता है, चाहे वह महाराष्ट्र हो, कर्नाटक हो, पश्चिम बंगाल हो या दिल्ली हो - जब तक कैदी अदालत से अनुमति प्राप्त करने में सक्षम नहीं होते, उन्हें सबसे बुनियादी आवश्यकताओं तक भी पहुंच से वंचित कर दिया जाता है.
ये अदालती अनुमतियाँ भी केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध हैं, जो अच्छे वकील रखने का खर्च उठा सकते हैं. कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले अधिकांश कैदियों के लिए किताब या टूथब्रश या सैनिटरी पैड जैसी साधारण चीज़ मांगना एक कठिन काम है. परिणामस्वरूप, या तो कैदी कभी भी अपने बुनियादी अधिकारों की मांग नहीं करते हैं, या इन सुविधाओं तक पहुंचने के बदले में अन्य प्रभावशाली कैदियों के लिए कपड़े, बर्तन धोना, झाड़ू लगाना आदि जैसे दैनिक काम करते पाए जाते हैं.
अब समय आ गया है कि हम जेलों और कैदियों को सुधार और पुनर्वास के नजरिये से देखें. जेलें उन लोगों के लिए "अंत" नहीं बल्कि शुरुआत हैं, जो खुद को आपराधिक न्याय प्रणाली में उलझा हुआ पाते हैं, और सुधार की राह पर चलना चाहते हैं. जेलों का कार्य कैदियों को कानून-पालन करने वाले के रूप में समाज में पुनर्वास के उद्देश्य से सुधारात्मक सेवाएं प्रदान करना है।
एनजी नागरिक.
अगली बार जब कोई हाई-प्रोफाइल कैदियों के लिए किताबों, दवाइयों और कलम तक पहुंच को एक विशेष विशेषाधिकार मानता है, तो क्या जेलों में इंसानों के साथ अमानवीय, अपमानजनक, अशोभनीय व्यवहार को सामान्य बनाने वाली चलन बन चुकी मान्यताओं को चुनौती दिया जाए? सवाल है कि क्या केजरीवाल बाहर से खरीदकर कोई सामान मंगवा सकते हैं? जेल के मैन्यूअल के अनुसार जेल अधिनियम इसकी इजाजत नहीं देता. वह कहता है कि अगर कैदी कोई सामान प्राप्त करता है, पास रखता है या इधर से उधर करता है तो अधिनियम इसे दंडनीय अपराध मानता है. कई मामलों की सूचना मिली थी जिसमें कैदियों को सेल फोन का उपयोग करते पाया गया था. कानूनी इसकी मंजूरी नहीं देता है. हालांकि जेलों का प्रशासन राज्य सरकारों के अधीन आता है, यह जेल अधिनियम है जिसकी नियम पुस्तिका के रूप में पालन किया जाता है.
हालांकि प्रत्येक राज्य में जेल कानून, नियम और विनियमों को बदलने का अधिकार रखने वाले राज्य सरकार के साथ अपने जेल मैनुअल हैं. गृह मंत्रालय ने समिति की सिफारिशों के आधार पर 2003 में मॉडल जेल मैनुअल तैयार किया था, जिसे जेलों के प्रबंधन और कैदियों के इलाज को नियंत्रित करने वाले कानूनों की समीक्षा के लिए स्थापित किया गया था. मैनुअल यह सुनिश्चित करती है कि कैदियों की “मूलभूत न्यूनतम आवश्यकताएं” जो मानव जीवन की गरिमा के अनुकूल हैं, उन्हें मिलनी चाहिएं. लेकिन यह कठोर कारावास काट रहे राजनेताओं या अभिनेताओं को अलग से कोई छूट नहीं देता.
इसी के साथ वीआईपी सुविधाएं की बात भी सामने आती है कि वह किस तरह का और किताना मिलनी चाहिए? इसके कुछ उदाहरण हैं—
पूर्व तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जयललिता की गिरफ्तारी असमान संपत्ति मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद हुई थी. उन्हें बैंगलोर सेंट्रल जेल में वीआईपी सेल में रखा गया था. जेल में पांच अन्य वीआईपी सेल भी हैं. इनमें एक बार कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और जी जनार्दन रेड्डी और एसएन कृष्णिया सेटी जैसे अन्य पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं.
पंजाब में बीबी जागीर कौर, जिन्हें उनकी बेटी के अपहरण के लिए दोषी ठहराया गया था, को कपूरथला जेल में शाही सुबिधाएं दी गई थी. इसका पता एक वीडियो फुटेज से चला था. इसी तरह से 2जी घोटाले के दोषी कनिमोझी या राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले के अपराधियों को भी वीआईपी सुविधाएं मिली मिली था.
अमर सिंह को तिहाड़ जेल में वीआईपी कैदियों की सबसे अच्छी देखभाल मिली थी. माना जाता है कि घर से पके हुए भोजन और यूरोपीय शौचालय तक मिला था. चारा घोटाले के मामले में दोषी होने के बावजूद लालू प्रसाद यादव को भी जेल में वीआईपी कैटेगरी का ट्रीटमेंट मिला. सिनेस्टार सलमान खान को भी घर से खाना खाने की अनुमति थी. उन्हें अधिकारियों के साथ कुर्सी पर भी बैठे देखा गया, जबकि अधिकारी खड़े थे.
साल 2014 में दिल्ली की तिहाड़ जेल के सिक्योरिटी वार्ड में बंद 175 कैदी सात दिनों तक भूख हड़ताल पर चले गए थे. जेल के आईजी व पुलिस कमिश्नर को भेजी शिकायत में कैदियों ने आरोप लगाया था कि जेल अधिकारियों द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, गोपाल कांडा, यूपी के बाहुबली सांसद धनंजय कुमार और मनु शर्मा जैसे वीवीआईपी कैदियों को रिश्वत लेकर वीवीआईपी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं.
तिहाड़ जेल में कैद सहारा इंडिया परिवार प्रमुख सुब्रत राय ने 57 दिनों के विशेषाधिकारों के लिए 31 लाख रुपये का भुगतान किया था. इनमें एक वातानुकूलित कमरा, पश्चिमी शैली के शौचालय, मोबाइल फोन, वाई-फाई और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं शामिल थीं. रॉय की कंपनी का बिल एक दिन में 54,400 रुपये आया था. क्योंकि उन्होंने अदालत में कहा था कि अगर उन्हें ये सुविधाएं जेल में नहीं मिलीं तो उनके रोजाना के कारोबार पर असर पड़ेगा.
जहां तक केजरीवाल के संबंध में सवाल है कि क्या उन्हें जेल के किसी काम में लगाया जाएगा, या उनसे मेहनत कराई जाएगी? इसका जवाब लिखे जाने तक नहीं में था. वैसे इसके अन्य कारण भी हैं, क्योंकि वह अभी अदालत न्यायिक हिरासत में हैं सजायाफ्ता कैदी नहीं हैं. दूसरे उनका स्तर विशेषाधिकार कैदी का है, लिहाजा अभी उनसे वहां मेहनत का कोई काम नहीं कराया जा सकता है और ना ही उनकी ड्यूटी जेल के किसी काम में लगाई जा सकती है.
प्रस्तुति: मैगबुक,सोर्स इंडियन एक्सप्रेस और न्यूज18